नमस्कार पाठकों! नवरात्रि का पावन पर्व हर वर्ष भक्तों के हृदय में आस्था और भक्ति की ज्योति प्रज्वलित करता है। यह नौ दिनों का उत्सव माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का माध्यम है, जहाँ प्रत्येक दिन एक विशेष देवी का आह्वान किया जाता है। आज हम बात करेंगे नवरात्रि के चौथे दिन की, जो माँ कुष्मांडा को समर्पित है। यह दिन सृष्टि की रचना और ऊर्जा का प्रतीक है।
यदि आप इस वर्ष 2025 की नवरात्रि (जो 22 सितंबर से आरंभ हो रही है) में भाग ले रहे हैं, तो चौथा दिन, अर्थात् 25 सितंबर, माँ कुष्मांडा की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। आइए, इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानें माँ कुष्मांडा की कथा, उनके स्वरूप, महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़े मंत्रों के बारे में। यह कथा न केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है।
माँ कुष्मांडा कौन हैं? स्वरूप और वर्णन
नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा कुष्मांडा रूप धारण करती हैं। ‘कुष्मांडा’ शब्द का अर्थ है ‘कु’ (थोड़ा), ‘उष्मा’ (गर्मी या ऊर्जा) और ‘अंड’ (ब्रह्मांड)। अर्थात्, जो थोड़ी सी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना करती हैं, वही माँ कुष्मांडा हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब सृष्टि की कल्पना हुई, चारों ओर घना अंधकार और सन्नाटा व्याप्त था। त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – ने माँ दुर्गा से सृष्टि रचना की प्रार्थना की। तब माँ के चौथे स्वरूप कुष्मांडा ने अपनी हल्की-सी हंसी (ईषत् हास्य) से ब्रह्मांड को जन्म दिया। इस मुस्कान से उजाला फैला और सृष्टि का प्रारंभ हुआ। इसलिए उन्हें आदिशक्ति या सृष्टि की आदि स्वरूपा कहा जाता है।
माँ कुष्मांडा का स्वरूप अत्यंत मनोहर और शक्तिशाली है। उनके पास आठ भुजाएँ हैं, जिन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है। दाहिनी भुजाओं में वे कमंडलु, धनुष, बाण, कमल का पुष्प और अमृतपूर्ण कलश धारण करती हैं, जबकि बायीं भुजाओं में चक्र, गदा और सभी सिद्धियों-निधियों को प्रदान करने वाली जपमाला है। उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। माँ का शरीर सूर्य की भाँति तेजस्वी है, और वे सूर्यमंडल के भीतर लोक में निवास करती हैं।
केवल इन्हीं की कृपा से सूर्यलोक में प्रवेश संभव है। उनके तेज से दसों दिशाएँ आलोकित हो जाती हैं, और ब्रह्मांड की हर वस्तु-प्राणी में उनका तेज व्याप्त है। माँ को कुम्हड़े (कद्दू) की बलि प्रिय है, जिसके कारण उनका नाम कुष्मांडा पड़ा। उनका मुखमंडल सूर्य की भाँति प्रकाशमान है, और वे चंद्रार्ध को शिखर पर धारण करती हैं। पीतांबर से सुसज्जित, नाना आभूषणों से अलंकृत, प्रफुल्ल वदन वाली, त्रिनेत्रा और सिंहारूढ़ा – ऐसा उनका दिव्य स्वरूप भक्तों को मोहित कर देता है।
माँ कुष्मांडा की पावन कथा
अब आइए, माँ कुष्मांडा की मूल कथा पर। सनातन शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि की शुरुआत से पूर्व समस्त ब्रह्मांड अंधकारमय था। कोई प्रकाश, कोई ध्वनि, कोई जीवन का चिह्न नहीं था। ब्रह्माजी सृष्टि रचना के लिए व्याकुल थे, लेकिन उनके पास आवश्यक ऊर्जा का अभाव था। विष्णुजी ने संरक्षण की चिंता की, जबकि शिवजी विनाश की तैयारी में लीन थे। त्रिदेव ने एकत्र होकर माँ दुर्गा की आराधना की। माँ प्रकट हुईं और कहा, “मैं ही आदि शक्ति हूँ। मेरी कृपा से सृष्टि का संचालन होगा।”
तब माँ ने अपना चौथा रूप – कुष्मांडा – धारण किया। उनके मुख पर एक हल्की मुस्कान फैली। यह मुस्कान इतनी शक्तिशाली थी कि अंधकार का परदा हट गया। अंडकोश (ब्रह्मांड का अंडा) फूट पड़ा, और उससे सूर्य, चंद्र, ग्रह-नक्षत्र, पर्वत, नदियाँ, वनस्पति और जीव-जंतु प्रकट हो गए। माँ की इस मुस्कान से सूर्यलोक का उदय हुआ, और सूर्यदेव को जीवन का प्रकाश मिला। कथा के अनुसार, माँ कुष्मांडा ने सूर्य को अपना तेज प्रदान किया, जिससे वह ब्रह्मांड का केंद्र बन गया। एक बार एक भक्त ने माँ से प्रार्थना की कि वह सूर्यलोक में प्रवेश की इच्छा रखता है। माँ प्रसन्न हुईं और कहा, “मेरी भक्ति से सब संभव है।” भक्त ने कठोर तपस्या की, और अंततः सूर्यलोक प्राप्त किया।
इस कथा का संदेश स्पष्ट है – माँ की एक मुस्कान से असंभव कार्य संभव हो जाते हैं। नवरात्रि में इस कथा का पाठ करने से भक्तों के जीवन से अंधकार मिटता है, और नई शुरुआत का द्वार खुलता है। यदि आप इस कथा का श्रवण या पाठ करें, तो सभी समस्याएँ दूर हो जाती हैं, और शुभ फल प्राप्त होते हैं। वास्तव में, यदि कथा का पाठ न किया जाए, तो पूजा का पूरा फल नहीं मिलता।
माँ कुष्मांडा का महत्व और लाभ
माँ कुष्मांडा की आराधना नवरात्रि के चौथे दिन विशेष फलदायी है। धार्मिक मान्यता है कि अचंचल और पवित्र मन से उनकी पूजा करने से रोग, शोक, दुख और दरिद्रता का नाश होता है। भक्त को दीर्घायु, यश, बल, आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। माँ अत्यल्प भक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को परम पद की प्राप्ति सुगम हो जाती है। वे आधि-व्याधि से मुक्ति दिलाती हैं और जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती हैं। विशेष रूप से, यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी समस्या से जूझ रहा है या आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है, तो माँ कुष्मांडा की उपासना चमत्कारिक लाभ देती है।
इसके अलावा, माँ सूर्य की ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनकी कृपा से भक्तों में आत्मविश्वास बढ़ता है, और वे जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के इस दिन पूजा करने से रुके हुए कार्य पूरे होते हैं, और नई संभावनाएँ खुलती हैं। आधुनिक संदर्भ में, यह दिन ऊर्जा और सृजनात्मकता का प्रतीक है – जैसे कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करना या स्वास्थ्य सुधार पर ध्यान देना।
पूजा विधि, भोग और मंत्र
चौथे दिन की पूजा विधि सरल लेकिन विधिपूर्वक होनी चाहिए। प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। कलश स्थापना के बाद माँ कुष्मांडा की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें। पूजा सामग्री में कुम्हड़ा (कद्दू) का विशेष महत्व है – इसे भोग के रूप में चढ़ाएँ। अन्य सामग्री: कमल, धूप, दीप, फल, मिठाई। माँ को पीले वस्त्र, पीले फूल और हल्दी का तिलक चढ़ाएँ।
पूजा के दौरान निम्न मंत्रों का जाप करें:
- देवी मंत्र: देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
- बीज मंत्र: कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
- ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
आरती के समय “जय अम्बे गौरी” गाएँ, और भोग में खरबूजा या कद्दू की सब्जी चढ़ाएँ। पूजा के अंत में कथा का पाठ अवश्य करें।
माँ कुष्मांडा स्तोत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहारूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥ भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु चाप बाण पद्मसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥ पटाम्बर परिधानां कमनीयाकृतिं सौम्याम्। नानालंकार भूषितां मंजीरहारकेयूरकिंकिणीरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥ प्रफुल्लवदनां सौम्यरूपिणीं क्षीणकटिनिम्ननाभिनितम्बनीम्॥
निष्कर्ष: माँ की कृपा से सृष्टि का उदय
नवरात्रि का चौथा दिन हमें सिखाता है कि जीवन में अंधकार कितना भी गहरा हो, माँ की मुस्कान से सब उजाला हो जाता है। माँ कुष्मांडा की कथा सुनकर और पूजा करके हम अपने जीवन में नई ऊर्जा का संचार करें। इस वर्ष 2025 में, जब दुनिया तेजी से बदल रही है, माँ की कृपा से हम मजबूत बने रहें। यदि आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं, तो आज ही माँ की पूजा करें और अपनी मनोकामना सौंप दें। जय माँ कुष्मांडा! जय माता दी!
Krishna Mishra writes for Insights of Hinduism, where he shares heartfelt thoughts on festivals, traditions, and the timeless wisdom of Sanatan Dharma. His aim is to keep the essence of Hindu culture alive in a way that feels simple, authentic, and relatable to everyone.
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