नवरात्रि: देवी की आराधना का पावन पर्व

नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो वर्ष में दो मुख्य रूप से मनाया जाता है – चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। “नवरात्रि” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नौ रातें”। इन नौ दिनों और रातों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व मुख्य रूप से देवी की शक्ति की आराधना पर केंद्रित होता है और पूरे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु में आती है, जबकि शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु में, और दोनों ही देवी दुर्गा को समर्पित हैं। नवरात्रि का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। लोग व्रत रखते हैं, पूजा करते हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

नवरात्रि का इतिहास और महत्व

नवरात्रि का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह पर्व देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में मनाया जाता है। महिषासुर ने देवताओं को पराजित कर दिया था, तब देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक युद्ध लड़कर उसका वध किया। यह कथा रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी उल्लेखित है, जहां राम ने रावण पर विजय के लिए देवी की आराधना की थी।

नवरात्रि का महत्व आध्यात्मिक रूप से भी गहरा है। यह समय आत्म-शुद्धि, ध्यान और सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करने का होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, नवरात्रि वर्ष की दो प्रमुख संधिकालों – मार्च और सितंबर – में आती है, जब मौसम परिवर्तन होता है, और व्रत रखना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। नवरात्रि नौ दिनों तक क्यों मनाई जाती है? इसके पीछे एक दिलचस्प कथा है कि देवी ने नौ रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया, इसलिए प्रत्येक दिन एक रूप की पूजा की जाती है।

नवरात्रि का महत्व महिलाओं की शक्ति से भी जुड़ा है। यह दिव्य स्त्री ऊर्जा (शक्ति) का उत्सव है, जो सृष्टि, पालन और संहार का प्रतिनिधित्व करती है। विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे बंगाल में दुर्गा पूजा, गुजरात में गरबा नृत्य और उत्तर भारत में रामलीला। यह पर्व एकता और भक्ति का संदेश देता है।

नवरात्रि के नौ दिन और देवी के नौ रूप

नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों – नवदुर्गा – की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन एक विशेष रंग और देवी के रूप से जुड़ा होता है:

  1. प्रथम दिन: शैलपुत्री – पर्वत की पुत्री, सफेद रंग। यह दिन स्थिरता और शक्ति का प्रतीक है।
  2. द्वितीय दिन: ब्रह्मचारिणी – तपस्या की देवी, नीला रंग। भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति।
  3. तृतीय दिन: चंद्रघंटा – घंटे की ध्वनि वाली, पीला रंग। साहस और सुरक्षा।
  4. चतुर्थ दिन: कूष्मांडा – ब्रह्मांड की रचयिता, हरा रंग। स्वास्थ्य और ऊर्जा।
  5. पंचम दिन: स्कंदमाता – कार्तिकेय की माता, ग्रे रंग। मातृत्व और पालन।
  6. षष्ठम दिन: कात्यायनी – ऋषि कात्यायन की पुत्री, नारंगी रंग। युद्ध और विजय।
  7. सप्तम दिन: कालरात्रि – अंधकार की नाशक, काला रंग। भय का नाश।
  8. अष्टम दिन: महागौरी – शुद्धता की देवी, गुलाबी रंग। पवित्रता और शांति।
  9. नवम दिन: सिद्धिदात्री – सिद्धियों की दात्री, बैंगनी रंग। पूर्णता और सफलता। इन दिनों में भक्त व्रत रखते हैं, मंत्र जपते हैं और आरती करते हैं। दसवें दिन विजयादशमी या दशहरा मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

नवरात्रि की पूजा और उत्सव

नवरात्रि की पूजा घरों और मंदिरों में की जाती है। पहले दिन घटस्थापना होती है, जहां जौ बोए जाते हैं और कलश स्थापित किया जाता है। भक्त फलाहार करते हैं, जिसमें फल, दूध और व्रत योग्य भोजन शामिल होता है। गुजरात में गरबा और डांडिया रास नृत्य प्रमुख हैं, जो रात भर चलते हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा में पंडाल सजाए जाते हैं और मूर्ति विसर्जन किया जाता है। उत्तर भारत में कन्या पूजन प्रचलित है, जहां नौ कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा की जाती है।

नवरात्रि में संगीत, नृत्य और सामुदायिक भोज का महत्व है। यह पर्व परिवार को एकजुट करता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

अखंड ज्योति जलाने की विधि

नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाना एक महत्वपूर्ण ritual है। अखंड ज्योति का अर्थ है निरंतर जलने वाली लौ, जो नौ दिनों तक नहीं बुझनी चाहिए। यह देवी की निरंतर उपस्थिति का प्रतीक है और घर में सुख-शांति लाती है। अब हम विस्तार से जानते हैं अखंड दीप जलाने की विधि, अखंड ज्योति जलाने की विधि, अखंड दिया जलाने की विधि और नवरात्रि अखंड ज्योति जलाने की विधि।

अखंड दीप जलाने की विधि

अखंड दीप जलाने के लिए सबसे पहले एक साफ मिट्टी या पीतल का दीपक चुनें। खंडित दीपक का उपयोग न करें। दीपक में शुद्ध घी या तिल/सरसों का तेल डालें। घी आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाता है, जबकि तेल भौतिक सुख देता है। बाती के लिए कलावा (लाल धागा) का उपयोग करें – लगभग 1 मीटर लंबा कलावा लें और उसे मोटी बाती बनाएं ताकि वह नौ दिनों तक जले। दीपक को जौ, चावल या गेहूं के ऊपर रखें।

अखंड ज्योति जलाने की विधि

प्रतिपदा तिथि से दशमी तक ज्योति जलाएं। दीपक का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रखें। जलाते समय मंत्र जपें: “करोति कल्याणं, आरोग्यं धन संपदाम्, शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपं ज्योति नमोस्तुते” या “दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते”। ज्योति बुझने पर तुरंत दोबारा जलाएं और देवी से क्षमा मांगें। नियम: ज्योति को हवा से बचाएं, नियमित तेल/घी डालें, और परिवार के सदस्य से निगरानी करें।

अखंड दिया जलाने की विधि

दिया जलाते समय स्वास्तिक बनाएं और मौली बांधें। अक्षत, सुपारी और फूल डालें। यह विधि घर में नकारात्मकता दूर करती है। यदि ज्योति बुझ जाए, तो इसे अपशकुन न मानें, बल्कि पुनः जलाएं।

नवरात्रि अखंड ज्योति जलाने की विधि

नवरात्रि में अखंड ज्योति विशेष रूप से जलाई जाती है। घटस्थापना के समय जलाएं और नौ दिनों तक बनाए रखें। लाभ: सिद्धि प्राप्ति, शत्रु नाश और परिवार की रक्षा। तेल या घी का चुनाव इच्छा अनुसार करें – घी शुभ, तेल स्थिरता देता है।

ये विधियां प्राचीन परंपराओं पर आधारित हैं और देवी की कृपा प्राप्त करने में सहायक हैं।

नवरात्रि में अन्य रीतियां और सावधानियां

नवरात्रि में व्रत के दौरान सात्विक भोजन करें। पूजा में फूल, अगरबत्ती और आरती शामिल करें। कन्या पूजन में कन्याओं को भोजन कराएं। सावधानियां: नॉन-वेज, शराब और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।

निष्कर्ष

नवरात्रि भक्ति, उत्सव और शक्ति का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि अच्छाई हमेशा विजयी होती है। अखंड ज्योति जैसी विधियां हमें निरंतरता और समर्पण का महत्व बताती हैं। इस पर्व को मनाकर हम जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। जय माता दी!

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Krishna Mishra writes for Insights of Hinduism, where he shares heartfelt thoughts on festivals, traditions, and the timeless wisdom of Sanatan Dharma. His aim is to keep the essence of Hindu culture alive in a way that feels simple, authentic, and relatable to everyone.

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