देवउठनी एकादशी

नमस्कार पाठकों! आज का दिन हिंदू पंचांग में एक विशेष महत्व रखता है। यदि आप भी सोच रहे हैं कि देवउठनी एकादशी कब है, तो खुशखबरी! आज ही, 1 नवंबर 2025 को यह पावन व्रत और त्योहार मनाया जा रहा है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को प्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा से जागते हैं, और सारी सृष्टि में नई ऊर्जा का संचार होता है। चातुर्मास की समाप्ति के साथ विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों का द्वार फिर से खुल जाता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि यह पर्व कब मनाया जाता है, इसका इतिहास क्या है, महत्व क्यों है, और पूजा विधि कैसे करें। यदि आप आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं, तो अंत तक पढ़ें। यह लेख लगभग 1000 शब्दों का है, जो आपको पूर्ण जानकारी देगा।

देवउठनी एकादशी क्या है? एक संक्षिप्त परिचय

देवउठनी एकादशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख व्रत है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। ‘देवउठनी’ शब्द का अर्थ है ‘देव का जागना’। पुराणों के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं, और चार महीनों बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। यह चातुर्मास का अंतिम चरण है, जिसमें भक्तों को संयम, उपवास और ध्यान का अभ्यास करने का संदेश मिलता है। इस दिन न केवल भगवान विष्णु जागते हैं, बल्कि हमारा आंतरिक देवत्व भी प्रबुद्ध होता है। आधुनिक जीवन की भागदौड़ में यह पर्व हमें याद दिलाता है कि आलस्य त्यागकर कर्म की ओर बढ़ना कितना आवश्यक है।

भारत में यह त्योहार विशेष उत्साह से मनाया जाता है। उत्तर भारत में तुलसी विवाह की धूम रहती है, जबकि दक्षिण में भगवान विष्णु की भव्य शोभायात्राएं निकलती हैं। यह पर्व शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है, जब प्रकृति भी जागृत हो जाती है। यदि आप इस व्रत को रख रहे हैं, तो यह आपके जीवन में सुख-समृद्धि लाएगा।

2025 में देवउठनी एकादशी कब है? तिथि और मुहूर्त

सबसे पहले, आपकी मुख्य जिज्ञासा का उत्तर: देवउठनी एकादशी 2025 कब है? यह आज, शनिवार 1 नवंबर 2025 को मनाई जा रही है। पंचांग के अनुसार:

  • एकादशी तिथि आरंभ: 1 नवंबर सुबह 9:11 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्ति: 2 नवंबर सुबह 7:31 बजे
  • पारणा समय (व्रत खोलना): 2 नवंबर शाम 6:34 बजे से रात 8:46 बजे तक

शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:50 से 5:41 बजे
  • अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:42 से 12:27 बजे
  • विजय मुहूर्त: दोपहर 1:55 से 2:39 बजे
  • गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:36 से 6:02 बजे

ये मुहूर्त पूजा के लिए सर्वोत्तम हैं। यदि आप आज सुबह उठकर व्रत रख रहे हैं, तो ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर लें। याद रखें, एकादशी तिथि कल तक चलेगी, इसलिए पूजा आज ही करें। इस वर्ष तिथि थोड़ी भ्रमित करने वाली रही, लेकिन पंचांग के अनुसार 1 नवंबर ही मुख्य दिन है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पौराणिक कथा

देवउठनी एकादशी की जड़ें पुराणों में हैं। पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण और श्रीमद्भागवतपुराण में इसका वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, भगवान विष्णु वर्षा ऋतु में बादलों के कारण ‘शयन’ अवस्था में चले जाते हैं, जो चातुर्मास कहलाता है। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं, क्योंकि प्रकृति की ऊर्जा सोई हुई होती है। प्रबोधिनी एकादशी को विष्णु जागते हैं, और सूर्य की किरणें फिर से स्पष्ट हो जाती हैं।

एक प्रसिद्ध कथा धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण की है। युधिष्ठिर ने पूछा, “प्रभु, इस व्रत का महत्व क्या है?” कृष्ण ने बताया कि ब्रह्मा ने नारद को कहा था – “प्रबोधिनी एकादशी सभी तीर्थों से श्रेष्ठ है। इसका व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।” श्रीमद्भागवत में नंद बाबा के व्रत का उल्लेख है, जो मोक्ष का द्वार खोलता है।

एक अन्य कथा तुलसी विवाह से जुड़ी है। तुलसी को भगवान विष्णु की अंश माना जाता है। चातुर्मास में तुलसी को स्पर्श करना वर्जित होता है, लेकिन जागरण के दिन विष्णु और तुलसी का विवाह होता है, जो वैवाहिक सुख का प्रतीक है। यह परंपरा वृंदावन और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से प्रचलित है। इतिहास में, यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है, जब ऋषि-मुनि चातुर्मास में एक स्थान पर रहकर तपस्या करते थे।

धार्मिक महत्व: क्यों रखें यह व्रत?

देवउठनी एकादशी का महत्व असीम है। यह न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि पुण्य वृद्धि, रोग निवारण और मोक्ष प्रदान करता है। पुराण कहते हैं कि इस व्रत से मनुष्य भवसागर पार कर जाता है। कलियुग में यह सबसे सरल लेकिन फलदायी व्रत है – यदि पूर्ण उपवास न हो सके, तो केवल चावल त्यागें।

आध्यात्मिक दृष्टि से, यह जागरण का पर्व है। भगवान विष्णु का जागना जगत के जागरण का संदेश है। “उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद, त्यज निद्रां जगत्पते” मंत्र से हम आलस्य त्यागकर कर्मयोगी बनते हैं। वैज्ञानिक रूप से, यह मौसम परिवर्तन का संकेत है – वर्षा के बाद शीतलता आती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। व्रत से डिटॉक्स होता है, और तुलसी विवाह पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। जो भक्त निष्ठापूर्वक व्रत रखते हैं, उन्हें सुख, संतान और धन की प्राप्ति होती है। सभी वर्ण-जाति के लोग इसके अधिकारी हैं – ब्राह्मण से शूद्र तक।

पूजा विधि: स्टेप बाय स्टेप गाइड

पूजा सरल लेकिन भावपूर्ण होनी चाहिए। प्रातः स्नान कर पीले वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर दीप प्रज्वलित करें।

  1. कलश स्थापना: जल से भरा कलश रखें, उसमें सुपारी, सुपाला और चंदन लगाएं।
  2. मुख्य पूजा: विष्णु को पंचामृत स्नान कराएं। फूल, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। तुलसी पत्र अनिवार्य है।
  3. जागरण मंत्र: “उठो देव श्रीहरि, चातुर्मास व्यतीत हो गया, निद्रा त्यागो प्रभु, जगत कल्याण करो।” का जाप करें।
  4. कथा पाठ: विष्णु सहस्रनाम या भागवत कथा सुनें।
  5. आरती: “ॐ जय जगदीश हरे” गाएं।

भोग में खीर, पंजीरी, मिश्री-दूध और फल चढ़ाएं। रात्रि जागरण में भजन गाएं। महिलाएं तुलसी को सजाकर विवाह करें – तुलसी को साड़ी ओढ़ाएं, मंगलसूत्र पहनाएं। पारणा द्वादशी पर फलाहार से व्रत तोड़ें।

व्रत के नियम और तुलसी विवाह की परंपरा

व्रत में सात्विक भोजन लें – फल, दूध, फलाहार। तामसिक भोजन, शराब, तंबाकू से दूर रहें। दिन में न सोएं, असत्य न बोलें। रात्रि में जागरण करें।

तुलसी विवाह अनोखा रिवाज है। तुलसी को केले के पेड़ से विवाह कराएं। यह वैवाहिक जीवन में मधुरता लाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है कि तुलसी विष्णु की पत्नी है। इस विवाह से घर में सुख-शांति आती है।

निष्कर्ष: जागरण का संदेश

देवउठनी एकादशी हमें सिखाती है कि जीवन में नई शुरुआत हमेशा संभव है। 2025 में यह 1 नवंबर को आया है, जो विवाह सीजन की शुरुआत है। व्रत रखें, पूजा करें, और आंतरिक शक्ति जागृत करें। भगवान विष्णु की कृपा से आपका जीवन पुष्ट हो। यदि आपको यह ब्लॉग पसंद आया, तो शेयर करें और कमेंट में अपनी अनुभूति बताएं। जय श्री हरि!

Author Profile

Krishna Mishra writes for Insights of Hinduism, where he shares heartfelt thoughts on festivals, traditions, and the timeless wisdom of Sanatan Dharma. His aim is to keep the essence of Hindu culture alive in a way that feels simple, authentic, and relatable to everyone.